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महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज पर निबंध हिंदी में | Mahatma Gandhi Gram Swaraj Nibandh

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महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज पर निबंध हिंदी में | Mahatma Gandhi Gram Swaraj Nibandh

हेलो फ्रेंड, इस पोस्ट “महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज पर निबंध हिंदी में | Mahatma Gandhi Gram Swaraj Nibandh” में, हम महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज के बारे में निबंध के रूप में विस्तार से पढ़ेंगे। तो…

चलिए शुरू करते हैं…

महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज पर निबंध हिंदी में | Mahatma Gandhi Gram Swaraj Nibandh

भारत गांव का देश है, इसकी ग्रामीण संस्कृति प्राचीनतम है. दुनिया में अनेक संस्कृतियों के बीच भारतीय संस्कृति की अलग ही पहचान है.

गांव सामुदायिक जीवन का श्रेष्ठ उदाहरण है. वेदों का मंत्र है “विश्वं पुष्टे ग्रामे अस्मिन अनातुरम” अर्थात मेरे गांव में परिपुष्ट विश्व का दर्शन होना चाहिए.

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यह दर्शन बिना स्वराज के नहीं हो सकता.

महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा वैदिक विचारों का ही विस्तार है.

महात्मा गांधी के समग्र चिंतन एवं दर्शन का केंद्र गांव ही रहे हैं.

स्वराज एक पवित्र एवं वैदिक शब्द है जिसका अर्थ है आत्मा शासन एवं आत्म संयम.

गांधीजी के अनुसार सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों द्वारा सत्ता प्राप्त करने से नहीं बल्कि जब सत्ता का दुरुपयोग होता है तब सब लोगों द्वारा प्रतिकार करने की क्षमता से है.

गांधीजी के इसी सपने को साकार करने के लिए भारत में ग्राम पंचायत और ग्राम सभाओं को स्थानीय विकास तथा स्थानीय प्रशासन का मुख्य आधार बनाया गया है.

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गांधी जी ने स्वराज की कल्पना एक पवित्र अवधारणा के संदर्भ में की थी जिसके मूल तत्व हैं आत्म अनुशासन और आत्म संयम.

गांधी जी का स्वराज गांव में बसता था और वह ग्रामीण उद्योगों की दुर्दशा से चिंतित थे.

खादी को बढ़ावा देना तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार उनके जीवन के आदर्श थे.

गांधी जी का कहना था कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गांव को अपने भोजन व कपड़े के विषय में स्वावलंबी बनाना है.

एक ऐसे समय जब पूरा संसार बुनियादी वस्तुओं की खरीद के लिए संघर्ष कर रहा है तब गांधी जी का ग्राम स्वराज एवं स्वदेशी का विचार ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकता है.

भारत जैसे एक विकासशील देश की उत्तर कोरोना काल में आगे की नीति यह होना चाहिए कि वह गांधी जी के ग्राम स्वराज्य और स्वदेशी की अवधारणा का अनुसरण करें.

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भारत के गांव सामाजिक संगठन की एक महत्वपूर्ण इकाई है.

अतः गांधीजी का स्वदेशी तथा ग्राम स्वराज का नारा ही सच्चे अर्थों में भारत को “आत्मनिर्भर भारत” के रूप में परिवर्तित कर सकता है.

अतः हमें वर्तमान समय में गांधी दर्शन कर पुनः एक नए दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है.

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